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ऋषियों ने वेदों के छंद और सूक्तों की रचना कैसे की देखें प्र. ह. रा. दिवेकर की किताब ऋग्वेद सूक्त विकास में

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एक विचारक आलोक कुजूर पंचवेदी जी ने फ़ेसबुक पर एक लेख की शुरुआत इस वाक्य से की कि ईश्वरीय ज्ञान (वेद) हर जगह बिखरे हुए हैं, बस उन्हें सहेजने की ज़रूरत है। मैंने इस वाक्य पर उन्हें यह कमेंट लिखा: Alok Kujur Panchvedi Bhai, उनमें जो सनातनी विद्वान सायण है, वह सायण ऐसा कहीं कहता हो तो आप उसका प्रमाण देख लें क्योंकि उसका भाष्य सब शंकराचार्य और मैक्समूलर आदि सब विदेशी विद्वान मानते हैं, वास्तव में वेद का अर्थ ज्ञान है।  सनातनी विद्वान प्र० हा० रा० दिवेकर ने अपने शोधग्रंथ 'ऋग्वेद का सूक्त विकास' में लिखा है कि विश्वामित्र को सबसे पहले गायत्री छंद के रूप में काव्य का ज्ञान हुआ। उस 'छंद के ज्ञान' को ज्ञान अर्थात वेद कहा गया। गायत्री के ज्ञान से पहले ऋषि विश्वामित्र के पिता कुशिक आदि ब्राह्मण गद्य में धर्म का व्याख्यान सुरक्षित रखते थे। उसे गाथा कहते थे। गाथा सुनाने के कारण कुशिक के पिता जी को गाथिन कहते थे। गायत्री 8-8 मात्राओं का छोटा छंद है। फिर ऋषियों को अधिक बात कहनी हुई तो उन्होंने गायत्री छंद से अधिक मात्राओं वाले बृहती आदि अन्य छंदों को बनाया । इसलिए ऋषियों ने गायत्री को ...