वेद ऋषियों की वाणी है
स्वामी दयानंद जी ने वेदमन्त्र का अनुवाद करते हुए शुरू में 'हे मनुष्यो!' लिख दिया और कह दिया कि परमेश्वर उपदेश करता है। अत: वेद परमेश्वर की वाणी है। जबकि वेद ऋषि की वाणी है और यह आर्य समाजी अनुवाद स्वयं प्रमाणित करता है। मैंने फ़ेसबुक पर यह अनुवाद देखा और मैं इसकी शैली देखकर ही समझ गया कि यह किसी आर्य समाजी का अनुवाद है। जो ऋषि की वाणी को परमेश्वर की वाणी दिखाना चाहता है: इस अनुवाद के अनुसार परमेश्वर कह रहा है कि 'हे मनुष्यो जैसे हम लोग सबके अधिपति सर्वज्ञ सर्वराज परमेश्वर की उपासना करते हैं, वैसे तुम भी उपासना करो।' क्या परमेश्वर भी किसी और परमेश्वर की उपासना करता है? और अगर वेदभाष्यानुसार करता है तो वह आग में घी और चंदन डालने वाला हवन किए बिना उपासना करता होगा। मनुष्य भी ऐसे ही करें तो ठीक है। परमेश्वर उपासना करता है तो परमेश्वर न हुआ। वह ऋषि हुआ। इसलिए यही मानना उचित है कि वेद में ऋषि उपदेश करते हैं कि 'हे मनुष्यो, जैसे हम लोग सबके अधिपति सर्वज्ञ सर्वराज परमेश्वर की उपासना करते हैं, वैसे तुम भी उपासना करो।'