क्या परमात्मा और परमेश्वर में अन्तर है?
हमारे एक फ़ेसबुक मित्र अक़ीदे से ईसाई हैं। नाम आलोक है। उन्होंने एक बहुत ज्ञानवर्धक लेख लिखा। उस पर मैंने एक कमेंट दिया है पहले मे उनका लेख प्रस्तुत करूंगा और फिर मैं उनको देखकर अपना कमेंट प्रस्तुत करूंगा: #बेहद_निजी_अनुभव●●● मुझमें एक निजी अनुभव घटित हुआ है। और निजी अनुभव के लिए कोई अधिकृत प्रार्थनाओं की जरूरत नहीं है। और निजी अनुभव के लिए कोई लाइसेंस्ट शास्त्रों की जरूरत नहीं है। और निजी अनुभव का किसी ने कोई ठेका नहीं लिया हुआ है। हर आदमी हकदार है पैदा होने के साथ ही परमात्मा को जानने का। मैं "मैं हूं" का अनुभव कर लेता हूँ यही काफी है, मेरे परमात्मा से संबंधित होने के लिए। और कुछ भी जरूरी नहीं है। बाकी सब गैर—अनिवार्य है। ईश्वर को जानने के लिए मैं अधिकृत शास्त्रों को रट लूँ,अधिकृत प्रार्थनाएं रट लूँ. यह गैरजरूरी है. लेकिन जो जानकारी हम इकट्ठी कर लेते हैं, वह जानकारी हमारे सिर पर बोझ हो जाती है। वह जो भीतर की सरलता है, वह भी खो जाती है. और तत्व—ज्ञान "मैं हूं"ज्ञान नहीं, जानकारी नहीं, सूचना नहीं, शास्त्रीयता नहीं बल्कि आत्मिक...