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ज़न्द है असल वेद और छन्द है ज़न्द का संस्कृत रूपांतरण

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  वेदों में भाष्य कारों ने कुछ नहीं बढ़ाया। असल वेद ज़न्द के रूप में यहीं आतिशपरस्त पारसियों के पास सुरक्षित हैं। ब्राह्मणों ने उसी का संस्कृत रूपांतरण करके छंद बना लिया।

वेदों में अलग अलग ऋषियों के विचार हैं

 जब गायत्री मंत्र के रूप में काव्य का नया ज्ञान ऋषि विश्वामित्र को मिला। तब काव्य को ज्ञान कहा गया। वह संस्कृत में पहला काव्य था। काव्य में, अर्थात वेद में मात्रात्मक कमियां नहीं होंगी। ऐसी आशा है। परन्तु एक कवि का विचार दूसरे से अलग होता ही है और कहीं बिल्कुल उलट भी हो सकता है। जैसे कि जावेद अख़्तर का विचार अल्लामा इक़बाल से अलग है और कहीं बिल्कुल उलट भी है। कोई इन सब कवियों के काव्य को संकलित कर दे तो उसका आभारी होना चाहिए। ऐसे ही ही हम ऋषि वेद व्यास के आभारी हैं। हमें उनके कारण कुछ वेद मन्त्र सुरक्षित मिल गए। इनसे कहीं ज़्यादा वेदमन्त्र खो गए। ऋषियों ने काव्य में अपने अनुभव और विचार को कहा है और अपने काव्य को वेद कहा है। व्यक्ति के विचार में कमी संभव है और यह कोई दोष नहीं है बल्कि यह स्वाभाविक है। सैकड़ों ऋषियों के विचार एक जैसे हों, यह संभव नहीं है।