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Showing posts from August, 2021

स्वामी दयानंद जी की सफलता के पीछे उनका कान्फ़िडेंस है

स्वामी दयानंद जी मौत से बचने का तरीक़ा योग सीखने के लिए घर से निकले थे। उन्हें पूरा भारत बस भर घूमने के बाद पता चला कि योग से ऐसा संभव नहीं है। उन्हें कथाओं में झूठ बताया था कि योग करके योगी अमर हो जाता है। उन्हें कोई योगी योग करके अमर बना हुआ न मिला। जिससे वह बहुत निराश हो गए थे। लेखराम कृत जीवनी में ऐसा लिखा है। अब वे जीवन कैसे काटते? वह गुरू बन गए और उपदेश देने लगे। मैंने उनके उपदेश में ग़ज़ब का कान्फ़िडेंस देखा है। बिना अरबी उर्दू हिब्रू इंग्लिश जाने ही स्वामी जी धड़ल्ले से सब उन भाषाओं के ग्रंथों की आलोचना कर देते थे और अपने यहां ऋग्वेद में यमी कुछ आतुर सी दिखे तो वहां अलंकार मान लेते हैं और सत्य को झूठ के पर्दे से ढक देते हैं। स्वामी जी ने ऋग्वेद को परमेश्वर की वाणी घोषित कर दिया और उनके कान्फ़िडेंस के कारण बहुत लोगों ने उनके दावे को सत्य भी मान लिया। उन्हें इसका लाभ यह हुआ कि बिना मेहनत किए केसर, दूध और पौष्टिक आहार मिलता रहा। अब आर्य समाजी यूट्यूब चैनल से कमाने के लिए झूठ बोल रहे हैं और पूरे कान्फ़िडेंस से झूठ बोलते हैं। इससे भारतीय समाज में वैमनस्य फैलता है। किसी दूसरे धर्म की...

स्वामी दयानन्द जी घर से निकले थे सच्चे योगी गुरू की खोज में, जो उन्हें पूरे भारतवर्ष में कहीं नहीं मिला।

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मूलशंकर वास्तव में अपनी एक बहन और चाचा की मौत से बहुत डर गए थे। उन्होंने धार्मिक कथाओं में सुन रखा था कि योग करने वाले योगी अमर हो जाते हैं। जबकि ऐसा नहीं होता।  वह अमर होने के लिए घर से सच्चे योगी गुरू की खोज में निकले और हिमालय के ऊपर तक चढ़ गए लेकिन उन्हें कोई सच्चा योगी गुरू न मिला। मूलशंकर जी ने लिखा है कि मुझे आश्रमों में भी सच्चा योगी गुरू न मिला। फिर उन्होंने एक नदी में डूबकर अपने प्राण देने की कोशिश की और जब वे गले से ऊपर तक पानी में पहुंचे तो उन्होंने पाखंडियों की पोल खोलने का निश्चय किया। यह बात लेखराम कृत स्वामी दयानन्द जी की जीवनी में लिखी है। अब आगे आप देख सकते हैं कि वह धर्म को व्यवसाय बनाए हुए सनातनी पंडितों की पोल खोलने में सफल रहे क्योंकि उन्हें इसका अनुभव था। वेद का सच्चा अर्थ करना उनके बस का न था। उन्होंने पृथ्वी, आकाश, राहु, केतु, कुबेर और घोड़ा सब नाम परमेश्वर के बताकर वेदमन्त्रों का मनमाना अनुवाद ऐसे कर डाला। जैसे दर्ज़ी कपड़े को अपनी मर्ज़ी के मुताबिक़ काटता है। ऐसा करने के बाद ही वह वेदों को परमेश्वर की वाणी घोषित कर सके, जोकि वह नहीं है। सत्यार्थ प्रकाश मे...

वेदों में इन्द्र और वरूण, दो देवताओं की स्तुति (और इबादत) एक साथ

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 सनातनी वेदज्ञों के अनुसार वेद प्राचीन ऋषियों की वाणी हैं। इनमें अग्नि और सूर्य आदि की पूजा है। कई स्थानों पर दो देवताओं की एक साथ स्तुति है। सनातनी विद्वान वेद का सही अर्थ जानते हैं। इमेज में देखें दो देवताओं की स्तुति एक साथ: गुरू बिरजानंद कहते थे कि वेद का अर्थ जानने के लिए ढाई वर्ष व्याकरण पढ़ना पड़ता है। स्वामी दयानंद जी ने उनसे ढाई वर्ष व्याकरण नहीं पढ़ा। बिरजानंद स्वभाव के बहुत सख़्त थे। वह स्वामी जी पर डंडा बजाते थे और एक बार उन्होंने दयानंद जी को रेस्टिकेट भी कर दिया था। उनके प्रिय एक शिष्य की सिफ़ारिश पर गुरू जी ने दयानंद जी को फिर वापस ले लिया था। ... लेकिन दयानंद जी वहां से कोर्स पूरा किए बिना ही निकल भागे और वह गुरूदक्षिणा में लौंग देने के बाद फिर कभी अपने गुरू जी से दो चार बार तो क्या एक बार भी मिलने नहीं गए।  दयानंद जी की जीवनी में हम पढ़ते हैं कि जब गुरू जी की पाठशाला से स्वामी दयानंद जी निकले, तब दयानंद जी के गुरू जी को यह पता न था कि वेद का सत्य अर्थ क्या है, जो दयानंद भविष्य में करेगा? और दयानंद जी को अपने गुरू जी के मत के सत्य होने का विश्वास न था। वह पाठशा...