वेदों में इन्द्र और वरूण, दो देवताओं की स्तुति (और इबादत) एक साथ
सनातनी वेदज्ञों के अनुसार वेद प्राचीन ऋषियों की वाणी हैं। इनमें अग्नि और सूर्य आदि की पूजा है। कई स्थानों पर दो देवताओं की एक साथ स्तुति है। सनातनी विद्वान वेद का सही अर्थ जानते हैं। इमेज में देखें दो देवताओं की स्तुति एक साथ:
गुरू बिरजानंद कहते थे कि वेद का अर्थ जानने के लिए ढाई वर्ष व्याकरण पढ़ना पड़ता है। स्वामी दयानंद जी ने उनसे ढाई वर्ष व्याकरण नहीं पढ़ा। बिरजानंद स्वभाव के बहुत सख़्त थे। वह स्वामी जी पर डंडा बजाते थे और एक बार उन्होंने दयानंद जी को रेस्टिकेट भी कर दिया था। उनके प्रिय एक शिष्य की सिफ़ारिश पर गुरू जी ने दयानंद जी को फिर वापस ले लिया था।... लेकिन दयानंद जी वहां से कोर्स पूरा किए बिना ही निकल भागे और वह गुरूदक्षिणा में लौंग देने के बाद फिर कभी अपने गुरू जी से दो चार बार तो क्या एक बार भी मिलने नहीं गए।
दयानंद जी की जीवनी में हम पढ़ते हैं कि जब गुरू जी की पाठशाला से स्वामी दयानंद जी निकले, तब दयानंद जी के गुरू जी को यह पता न था कि वेद का सत्य अर्थ क्या है, जो दयानंद भविष्य में करेगा?
और दयानंद जी को अपने गुरू जी के मत के सत्य होने का विश्वास न था।
वह पाठशाला से निकले और एक स्थान पर शैवमत के पक्ष में शास्त्रार्थ करके जीत गए।
इससे पता चला कि तब तक उन्हें वेद-व्याकरण पढ़ने के बाद भी स्वयं सत्य मत का पता न था।
अब हमने स्वामी जी का मत देखा तो पता चला कि वह घोड़े का अर्थ परमेश्वर बता गए हैं।
सनातनी विद्वान ऐसा अनर्थ नहीं करते।
दयानंद जी ने वेदों को जबरन परमेश्वर की वाणी घोषित कर दिया था।
वेदों में परमेश्वर ने अपने लिए कोई ऐसा निज नाम प्रयुक्त नहीं किया है, जो किसी सृष्टि के लिए प्रयुक्त न हो।
ओउम को परमेश्वर का निज नाम भी स्वामी जी बताते हैं। जो कि वास्तव में गाय-बैल के रम्भाने से उत्पन्न एक शब्द है न कि परमेश्वर का निज नाम। आप गाय बैल को रम्भाते समय स्वयं सुन लें। वे 'ओं' 'ओं' की ध्वनि निकालते हैं।
आम लोग और कुछ विद्वान ब्रह्म शब्द को परमेश्वर का नाम बोलते हैं परंतु वेदों में कनिष्ठ ब्रह्म और ज्येष्ठ ब्रह्म आदि कई ब्रह्म मिलते हैं।
इसके उपरांत भी स्वामी दयानंद जी ने खींचतान कर बहुदेववादी वेदों का अर्थ इस्लाम की नक़ल में एकेश्वरवादी कर दिया। जिसे शंकराचार्यों ने और बीएचयू ने आज तक स्वीकार न किया।
परंतु आश्चर्य यह है कि सब मुस्लिम धर्म प्रचारक स्वामी दयानंद जी का वेदार्थ मानते हैं और उन्होंने कई लोगों को स्वामी जी का वेद भाष्य दिखाकर मुस्लिम बना लिया है कि देखो, परमेश्वर का स्वरूप जैसा वेद में लिखा है, वही क़ुरआन में लिखा है। जबकि परमेश्वर का वैसा स्वरूप सनातनियों के वेद-अनुवाद में नहीं मिलता।
ऐसा लगता है कि स्वामी दयानंद जी ने सर सैयद अहमद ख़ाँ की मित्रता के प्रभाव में आकर वेदों का एकेश्वरवादी अर्थ किया और
अंग्रेज़ों के प्रभाव में आकर सब हिंदू मतों का खंडन किया ताकि सब आपस में डिबेट में बिज़ी हो जाएं और ऐसा ही हुआ।
स्वामी जी ने अपने जीते जी मुस्लिमों के व ईसाईयों के धर्म के खंडन का कोई समुल्लास सत्यार्थ प्रकाश में प्रकाशित न कराया।
स्वामी दयानंद जी ने गुजरात में जिस जगह को अपना जन्म स्थान बताया, उनकी मृत्यु के पश्चात लेखराम आदि उनके शिष्यों द्वारा भौतिक सत्यापन करने पर वह भी झूठ निकला।
इससे यह भी पता न चल पाया कि एनी बेसेंट के साथ मिलकर काम करने वाले दयानंद उर्फ़ मूलशंकर वास्तव में किस जाति के थे और वह किस उद्देश्य से हिंदुओं को प्रकृति की उपासना से हटा रहे थे?
जोकि वेदों में और सनातनियों के जीवन में बिल्कुल स्पष्ट है।
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