वेद के बारे में वर्क रामपुर का नज़रिया ग़लत है!
रमज़ान रहमत और भलाई का महीना है और नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और सहाबा इस महीने में रहमत के काम दूसरे सब महीनों से ज़्यादा करते थे और रमज़ान जितने काम नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की पैदाईश के महीने में करने का कोई हुक्म नहीं मिलता। हर जमाअत को कुछ सादा लौह और कुछ राएज निज़ाम से असंतुष्ट और कुछ बाग़ी और कुछ विचारशील लोग हमेशा मिल जाते हैं। जिन्हें साथ लेकर अमीरे जमाअत इस्लाह करता है लेकिन मुस्लिमों की इस्लाह न तो आसान है और न ही 30-40 साल में मुमकिन है। अब शुरू होता है क़ुरआन की आयतों के नए अर्थ बताने का काम। इसमें आड़े आती हैं हदीसों की रिवायतें, तो उन्हें झुठला दिया जाता है कि हम इन्हें नहीं मानते। हम सबसे पहले क़ुरआन को मानते हैं। और फिर वे इस काम में आगे बढ़ते हैं और कहते हैं कि हलाल और हराम सब क़ुरआन में आ चुका है तो उनका वह हलाल और हराम भी पहले से चले आ रहे मुस्लिम समाज से अलग हो जाता है जिसपर शिया, सुन्नी और दूसरे फ़िरक़ों में बंटकर भी एक थे। इस तरह जो लोग फ़िरक़ावारियत के ख़िलाफ़ खड़े हुए थे, वे खुद मुत्लक़ मुज्तहिद बनकर नई फ़िक़ह और एक नया फ़िरक़ा बना देते...