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Showing posts from June, 2024

ऊँ शब्द कौन बोलता है?

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Syed Shahroz Quamar sb की एक फ़ेसबुक पोस्ट पर निलय सिंह जी ने एक कमेंट किया था। जिस पर मैंने एक कमेंट किया।  Nilay Singh जी, ऊँ शब्द को ओंकार कहते हैं और जब बैल बोलता है तो वह 'ओं ओं' की ध्वनि निकालता है। सो बैल के मुंह से निकला शब्द एक प्राकृतिक शब्द है। इसे किसी धर्म से जोड़ना ग़लत है। यह प्राकृतिक शब्द सबका है। प्राचीन काल में जिसके पास अधिक पशु होते थे, वह अधिक धनी व्यक्ति माना जाता था। सो 'ओं' शब्द समृद्धि का प्रतीक था। जिसे पशुपालक समुदाय शुभ मानकर हरेक शुभ कार्य के शुरू में बोलते थे। आज भी सब देख सकते हैं कि बैल क्या शब्द बोलता है? ///  Syed Shahroz Quamar sb की फ़ेसबुक पोस्ट का लिंक:  https://www.facebook.com/share/p/TWcC3wv2RUf3VMnw/?mibextid=oFDknk

पुनर्जन्म और आवागमन की कल्पना में 2 बड़ी कमियाँ हैं

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जो लोग पुनर्जन्म या आवागमन में विश्वास करते हैं, यह लेख उनके लिए है। पुनर्जन्म को आवागमन के अर्थ में लिया जाता है और इसमें एक कमज़ोर बात यह है कि हर जन्म से पहले एक जन्म मानना आवश्यक है, जिसके कर्मों का फल भोगने के लिए दूसरा जन्म हुआ। फिर उससे पहले का जन्म क्यों हुआ? वह उससे पहले के जन्म के कर्मफल भोगने के लिए हुआ। इस प्रकार हर जन्म से पहले एक जन्म मानना पड़ता है और कोई भी जन्म सबसे पहला जन्म नहीं कहलाता। इस आवागमन को मानने से यह स्पष्ट नहीं होता कि मनुष्य का पहला जन्म कब और क्यों हुआ? वैज्ञानिक बताते हैं कि धरती पर मनुष्यों से पहले पेड़ पौधे और पशु पैदा हुए? ये किस पाप की सज़ा भुगतते रहे जबकि अभी धरती पर मनुष्यों ने कोई पाप ही नहीं किया था? पहले मनुष्य होते, वे पाप करते तो वे पापी पेड़-पौधे और पशु-पक्षी बनते लेकिन विज्ञान ने सिद्ध किया है कि पहले पेड़-पौधे और पशु-पक्षी बने। उनके बाद धरती पर मनुष्य पैदा हुआ।

क्या वेद में अन्न, फल और घी को आग देवता को खिलाने की शिक्षा परमेश्वर ने दी होगी?

वैदिक साहित्य विशाल है। स्वामी दयानंद जी द्वारा उसमें से पुराणों को छोड़ना, मनु स्मृति में अपनी मर्ज़ी से छंटाई करना, त्रिकाल संध्या को 2 समय करना और सब को सुबह शाम हवन की आग में खाद्य वस्तुएं जलाने पर बाध्य करने का अर्थ यही है कि स्वामी दयानंद जी वेदों के धर्म को ठीक से समझ नहीं पाए थे वर्ना वह सडको अपने गुरु विरजानंद जी का मत बताते कि वह वेद मंत्र का क्या अर्थ बताते थे? जो अपना धर्म न समझ पाया हो और अपने ही धर्म के ग्रंथों को नदी में डुबो चुका हो, उससे दूसरे धर्मों के आदर की अपेक्षा व्यर्थ है। स्वामी जी ने बताया है कि उन्हें उनके पिताजी ने कुल का कलंक कहा था। जब उनके पिताजी उन्हें सिद्धपुर के मेले से पकड़कर घर ले जा रहे थे, तब स्वामी जी शौच का बहाना करके लोटा लेकर निकले और एक बड़े पेड़ पर छिपकर बैठ गए। उनका बाप उन्हें ढूंढते हुए उस पेड़ के नीचे भी आया, जिसपर स्वामी जी छिपे हुए थे लेकिन स्वामी जी अपने सगे बाप को धोखा देकर भाग गए। इस तरह के थे स्वामी जी। फिर उन्होंने कुछ समय नशा भी किया लेकिन छोड़ दिया। अभद्र भाषा बोलना स्वामी जी से न छूट सका। सो वह अभद्र शब्द बोलते और लिखते थे तो इससे...