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वेद के शब्दों को मुस्लिम विद्वानों द्वारा अपना अर्थ पहनाना ग़लत है।

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 वेदों में ज्येष्ठ ब्रह्म, कनिष्ठ ब्रह्म और अन्न ब्रह्म बहुत सारे ब्रह्म हैं। Hafiz Shan Uddin bhai, वेद ऋषियों का रचा हुआ काव्य है और क़ुरआन शायरी नहीं है। वेद के शब्दों के अर्थ सायण आदि सनातनी विद्वान जानते हैं। वे बताकर गए होंगे। उन्हें जानने की इच्छा डिबेट करने में नहीं आता। वेद के शब्दों को मुस्लिम विद्वान अपने अर्थ पहना दें, यह ग़लत है। वेदों में, उपनिषदों में, पुराणों में बहुत सारे देवी-देवताओं की उपासना लिखी हुई है। सो वेद और उपनिषद जो कह रहे हैं,  उनसे वही मन्सूब करना चाहिए।

सनातनी विद्वानों के अनुसार वेदों में बहुत से देवी-देवताओं की उपासना है

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 स्वामी दयानंद जी ने सत्यार्थ प्रकाश के प्रथम समुल्लास में अग्नि, जल, वायु, पृथिवी, आकाश, राहु, केतु, भाई, दादा और परदादा सबको परमेश्वर का नाम बताकर वेद में एकेश्वरवाद दिखाया और वेदभाष्य कर दिया।  फिर वह वेदभाष्य देश और विदेश में वेद के विद्वानों के पास भेजा। सबने उसे ग़लत माना। इसीलिए सभी शंकराचार्य और विश्व के सभी विद्वान सनातनी अनुवाद को ही सही अनुवाद मानते हैं। सनातनी विद्वान अग्नि का अर्थ अग्नि मानते हैं तो वे सही मानते हैं। सबसे पहले वे अरणी मंथन करके आग जलाते हैं और फिर वे आग की उपासना करते हैं। पहला वेदमन्त्र अग्नि की उपासना का मंत्र है। ईरान के आर्य भी अग्नि की उपासना करते थे। आज भी भारत में ईरान से आए पारसी अग्नि की उपासना करते हैं। विद्वानों ने पारसियों के ग्रंथ 'ज़ंद' और वेदों के 'छंद' में कई चीज़ों में साम्य पाया है। दोनों में समान देवताओं की उपासना है। वेदों में अग्नि सहित बहुत से देवी देवताओं की उपासना है। मैंने दयानंदी भाष्य और सनातनी भाष्य, दोनों पढ़े। सनातनी भाष्य पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी का पढ़ा। जो पहले आर्य समाज के पदाधिकारी थे। जब उन्होंने वेद...

क्या परमात्मा और परमेश्वर में अन्तर है?

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 हमारे एक फ़ेसबुक मित्र अक़ीदे से ईसाई हैं। नाम आलोक है। उन्होंने एक बहुत ज्ञानवर्धक लेख लिखा। उस पर मैंने एक कमेंट दिया है पहले मे उनका लेख प्रस्तुत करूंगा और फिर मैं उनको देखकर अपना कमेंट प्रस्तुत करूंगा: #बेहद_निजी_अनुभव●●● मुझमें एक निजी अनुभव घटित हुआ है। और निजी अनुभव के लिए कोई अधिकृत प्रार्थनाओं की जरूरत नहीं है। और निजी अनुभव के लिए कोई लाइसेंस्ट शास्त्रों की जरूरत नहीं है। और निजी अनुभव का किसी ने कोई ठेका नहीं लिया हुआ है। हर आदमी हकदार है पैदा होने के साथ ही परमात्मा को जानने का। मैं "मैं हूं" का अनुभव कर लेता हूँ यही काफी है, मेरे परमात्मा से संबंधित होने के लिए। और कुछ भी जरूरी नहीं है। बाकी सब गैर—अनिवार्य है।       ईश्वर को जानने के लिए मैं अधिकृत शास्त्रों को रट लूँ,अधिकृत प्रार्थनाएं रट लूँ. यह गैरजरूरी है. लेकिन जो जानकारी हम इकट्ठी कर लेते हैं, वह जानकारी हमारे सिर पर बोझ हो जाती है। वह जो भीतर की सरलता है, वह भी खो जाती है.          और तत्व—ज्ञान "मैं हूं"ज्ञान नहीं, जानकारी नहीं, सूचना नहीं, शास्त्रीयता नहीं बल्कि आत्मिक...

मनुष्य के शरीर में परमेश्वर का निवास स्थान?

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स्वामी दयानंद को दूसरों की मान्यताओं की मज़ाक़ उड़ाने की आदत थी परंतु क्या उनकी बातों को मानना संभव है? देखिए, वेद परमेश्वर के मिलने की जगह मनुष्य के शरीर में बता रहे हैं:

वेद परमेश्वर की वाणी नहीं है क्योंकि वेदों में बहुत से देवी देवताओं की उपासना है

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 स्वामी दयानंद जी ने सत्यार्थ प्रकाश के प्रथम समुल्लास में अग्नि, जल, वायु, पृथिवी, आकाश, राहु, केतु, भाई, दादा और परदादा सबको परमेश्वर का नाम बताकर वेद में एकेश्वरवाद दिखाया और वेदभाष्य कर दिया। फिर उस वेदभाष्य देश और विदेश में वेद के विद्वानों के पास भेजा। सबने उसे ग़लत माना। इसीलिए सभी शंकराचार्य और विश्व के सभी विद्वान सनातनी अनुवाद को ही सही अनुवाद मानते हैं। सनातनी विद्वान अग्नि का अर्थ अग्नि मानते हैं तो वे सही मानते हैं। सबसे पहले वे अरणी मंथन करके आग जलाते हैं और फिर वे आग की उपासना करते हैं। पहला वेदमन्त्र अग्नि की उपासना का मंत्र है। ईरान के आर्य भी अग्नि की उपासना करते थे। आज भी भारत में ईरान से आए पारसी अग्नि की उपासना करते हैं। विद्वानों ने पारसियों के ग्रंथ 'ज़ंद' और वेदों के 'छंद' में कई चीज़ों में साम्य पाया है। दोनों में समान देवताओं की उपासना है। वेदों में अग्नि सहित बहुत से देवी देवताओं की उपासना है। मैंने दयानंदी भाष्य और सनातनी भाष्य, दोनों पढ़े। सनातनी भाष्य पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी का पढ़ा। जो पहले आर्य समाज के पदाधिकारी थे। जब उन्होंने वेदभ...

वेद ऋषियों की वाणी है

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 स्वामी दयानंद जी ने वेदमन्त्र का अनुवाद करते हुए शुरू में 'हे मनुष्यो!' लिख दिया और कह दिया कि परमेश्वर उपदेश करता है। अत: वेद परमेश्वर की वाणी है। जबकि वेद ऋषि की वाणी है और यह आर्य समाजी अनुवाद स्वयं प्रमाणित करता है। मैंने फ़ेसबुक पर यह अनुवाद देखा और मैं इसकी शैली देखकर ही समझ गया कि यह किसी आर्य समाजी का अनुवाद है। जो ऋषि की वाणी को परमेश्वर की वाणी दिखाना चाहता है: इस अनुवाद के अनुसार परमेश्वर कह रहा है कि 'हे मनुष्यो जैसे हम लोग सबके अधिपति सर्वज्ञ सर्वराज परमेश्वर की उपासना करते हैं, वैसे तुम भी उपासना करो।' क्या परमेश्वर भी किसी और परमेश्वर की उपासना करता है? और अगर वेदभाष्यानुसार करता है तो वह आग में घी और चंदन डालने वाला हवन किए बिना उपासना करता होगा। मनुष्य भी ऐसे ही करें तो ठीक है। परमेश्वर उपासना करता है तो परमेश्वर न हुआ। वह ऋषि हुआ। इसलिए यही मानना उचित है कि वेद में ऋषि उपदेश करते हैं कि  'हे मनुष्यो,  जैसे हम लोग सबके अधिपति सर्वज्ञ सर्वराज परमेश्वर की उपासना करते हैं, वैसे तुम भी उपासना करो।'

ऋषियों ने वेदों के छंद और सूक्तों की रचना कैसे की देखें प्र. ह. रा. दिवेकर की किताब ऋग्वेद सूक्त विकास में

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एक विचारक आलोक कुजूर पंचवेदी जी ने फ़ेसबुक पर एक लेख की शुरुआत इस वाक्य से की कि ईश्वरीय ज्ञान (वेद) हर जगह बिखरे हुए हैं, बस उन्हें सहेजने की ज़रूरत है। मैंने इस वाक्य पर उन्हें यह कमेंट लिखा: Alok Kujur Panchvedi Bhai, उनमें जो सनातनी विद्वान सायण है, वह सायण ऐसा कहीं कहता हो तो आप उसका प्रमाण देख लें क्योंकि उसका भाष्य सब शंकराचार्य और मैक्समूलर आदि सब विदेशी विद्वान मानते हैं, वास्तव में वेद का अर्थ ज्ञान है।  सनातनी विद्वान प्र० हा० रा० दिवेकर ने अपने शोधग्रंथ 'ऋग्वेद का सूक्त विकास' में लिखा है कि विश्वामित्र को सबसे पहले गायत्री छंद के रूप में काव्य का ज्ञान हुआ। उस 'छंद के ज्ञान' को ज्ञान अर्थात वेद कहा गया। गायत्री के ज्ञान से पहले ऋषि विश्वामित्र के पिता कुशिक आदि ब्राह्मण गद्य में धर्म का व्याख्यान सुरक्षित रखते थे। उसे गाथा कहते थे। गाथा सुनाने के कारण कुशिक के पिता जी को गाथिन कहते थे। गायत्री 8-8 मात्राओं का छोटा छंद है। फिर ऋषियों को अधिक बात कहनी हुई तो उन्होंने गायत्री छंद से अधिक मात्राओं वाले बृहती आदि अन्य छंदों को बनाया । इसलिए ऋषियों ने गायत्री को ...