वेद परमेश्वर की वाणी नहीं है क्योंकि वेदों में बहुत से देवी देवताओं की उपासना है

 स्वामी दयानंद जी ने सत्यार्थ प्रकाश के प्रथम समुल्लास में अग्नि, जल, वायु, पृथिवी, आकाश, राहु, केतु, भाई, दादा और परदादा सबको परमेश्वर का नाम बताकर वेद में एकेश्वरवाद दिखाया और वेदभाष्य कर दिया।

फिर उस वेदभाष्य देश और विदेश में वेद के विद्वानों के पास भेजा।

सबने उसे ग़लत माना।

इसीलिए सभी शंकराचार्य और विश्व के सभी विद्वान सनातनी अनुवाद को ही सही अनुवाद मानते हैं।

सनातनी विद्वान अग्नि का अर्थ अग्नि मानते हैं तो वे सही मानते हैं।

सबसे पहले वे अरणी मंथन करके आग जलाते हैं और फिर वे आग की उपासना करते हैं। पहला वेदमन्त्र अग्नि की उपासना का मंत्र है।

ईरान के आर्य भी अग्नि की उपासना करते थे।

आज भी भारत में ईरान से आए पारसी अग्नि की उपासना करते हैं।

विद्वानों ने पारसियों के ग्रंथ 'ज़ंद' और वेदों के 'छंद' में कई चीज़ों में साम्य पाया है।

दोनों में समान देवताओं की उपासना है।

वेदों में अग्नि सहित बहुत से देवी देवताओं की उपासना है।

मैंने दयानंदी भाष्य और सनातनी भाष्य, दोनों पढ़े।

सनातनी भाष्य पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी का पढ़ा। जो पहले आर्य समाज के पदाधिकारी थे।

जब उन्होंने वेदभाष्य करने का निर्णय किया तो उन्होंने दयानंदी सिद्धांत के बजाय सायण के आधार पर वेदभाष्य किया।

मैंने दोनों पढ़े।

मुझे पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी का अनुवाद सही लगा।

उनके वेदभाष्य में बहुत से देवी देवताओं की उपासना का स्पष्ट वर्णन है।

स्वामी दयानंद जी अपने गुरु ऋषि बिरजानंद जी के पास नहीं उतने समय नहीं ठहरे, जितना समय उन्होंने उन्हें रुक कर अध्ययन करने के लिए कहा था।

वह उनसे समय से पहले विदा ले आए थे।

अगर वह उनके पास पूरे समय रुकते और दस पांच सूक्तों का अनुवाद करके उन्हें दिखाकर उनकी सम्मति भी लेते तो संभव है कि वे अश्व को परमेश्वर का नाम न बताते।

स्वामी दयानंद जी किस चीज़ को परमेश्वर का नाम बताकर अनुवाद कर दें,

कुछ पता नहीं है।

वेदों का वास्तविक अर्थ जानने के लिए पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी का अनुवाद पढ़ें,

जो पहले आर्यसमाजी थे और फिर उन्होंने आर्यसमाजी विचारधारा को छोड़कर वेदों के अनुसार बहुत से देवी देवताओं की उपासना वाला वेदानुवाद किया।



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