वेद ईशवाणी नहीं है बल्कि ऋषिवाणी है।

सुबोध सागर जौहरी, हर आदमी अकेला भी आपको यह बताने के लिए काफ़ी है कि वेद ईशवाणी नहीं, ऋषियों की वाणी है। जिसके अनुसार यज्ञ में घोड़े से रानी का समागम कराया जाता था।
जिसे छिपाने के लिए स्वामी दयानंद जी ने 'अश्व' का अर्थ परमेश्वर करके वेदार्थ बदल दिया। अब उनकी धोखाधड़ी का पर्दाफ़ाश हो चुका है।
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नीचे दिए लिंक पर यह सवाल जवाब हुआ:

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