स्वामी दयानन्द जी घर से निकले थे सच्चे योगी गुरू की खोज में, जो उन्हें पूरे भारतवर्ष में कहीं नहीं मिला।

मूलशंकर वास्तव में अपनी एक बहन और चाचा की मौत से बहुत डर गए थे। उन्होंने धार्मिक कथाओं में सुन रखा था कि योग करने वाले योगी अमर हो जाते हैं। जबकि ऐसा नहीं होता। 

वह अमर होने के लिए घर से सच्चे योगी गुरू की खोज में निकले और हिमालय के ऊपर तक चढ़ गए लेकिन उन्हें कोई सच्चा योगी गुरू न मिला। मूलशंकर जी ने लिखा है कि मुझे आश्रमों में भी सच्चा योगी गुरू न मिला। फिर उन्होंने एक नदी में डूबकर अपने प्राण देने की कोशिश की और जब वे गले से ऊपर तक पानी में पहुंचे तो उन्होंने पाखंडियों की पोल खोलने का निश्चय किया।

यह बात लेखराम कृत स्वामी दयानन्द जी की जीवनी में लिखी है।

अब आगे आप देख सकते हैं कि वह धर्म को व्यवसाय बनाए हुए सनातनी पंडितों की पोल खोलने में सफल रहे क्योंकि उन्हें इसका अनुभव था।

वेद का सच्चा अर्थ करना उनके बस का न था। उन्होंने पृथ्वी, आकाश, राहु, केतु, कुबेर और घोड़ा सब नाम परमेश्वर के बताकर वेदमन्त्रों का मनमाना अनुवाद ऐसे कर डाला। जैसे दर्ज़ी कपड़े को अपनी मर्ज़ी के मुताबिक़ काटता है। ऐसा करने के बाद ही वह वेदों को परमेश्वर की वाणी घोषित कर सके, जोकि वह नहीं है।

सत्यार्थ प्रकाश में उन्होंने 12 समुल्लास रखे थे। उनकी मौत के बाद उनके चेलों ने उसमें 2 समुल्लास और जोड़ दिए।

उसके बाद सत्यार्थ प्रकाश में इतनी त्रुटियां निकलीं कि सब आर्य उपदेशक मिलकर भी उन्हें आज तक ठीक न कर सके।

अब सत्यार्थ प्रकाश के शुरू में ही प्रकाशक आर्य समाजियों की पोल खोलता हुआ मिलता है कि

आर्य समाजियों ने त्रुटि सुधार के नाम पर सत्यार्थ प्रकाश ही बदल डाला है। मैं उन आर्य समाजियों से शास्त्रार्थ करना चाहता हूँ।

और उससे आर्य समाजी शास्त्रार्थ नहीं करते।

इस प्रकार आर्य समाजियों की पोल खोलने का काम भी हो रहा है। आर्य समाजियों की पत्नियां करवा चौथ का व्रत रखकर भी इनकी पोल खोल देती हैं कि इनकी बात सुनता कौन है?

कुल नतीजा यह हुआ कि स्वामी दयानंद जी की सारी मेहनत अकारथ गई।

दूसरों की पोल खोलने के चक्कर में स्वयं उनके मत की भी पोल खुल गई कि उनका मत त्रैतवाद वास्तव में ठीक नहीं है।

स्वामी जी का त्रैतवाद इन प्रश्नों के उत्तर नहीं देता:

1. जब आत्मा सदा से और स्वयं से है तो परमेश्वर ने उन्हें पहली बार जन्म जिस योनि में भी दिया तो क्यों दिया और उसी योनि में जन्म क्यों दिया? 

2. क्या परमेश्वर ने सभी आत्माओं को जन्म दे दिया था या कुछ आत्माओं को छोड़ दिया था?

3. परमेश्वर ने सब आत्माओं को एक ही योनि में जन्म दिया था या अलग अलग योनि में?

स्वामी जी कोई सच्चा पूर्ण योगी गुरू न मिला। जिससे वह अमर हो पाने। स्वामी जी की जीवनी से यह पता चलता है कि उनके काल में कोई पूर्ण सच्चा योगी गुरू न था।

लेखराम कृत उनकी जीवनी में आता है कि स्वामी जी पारे की गोली और अभ्रक की भस्म बना लेते थे। स्वामी जी ने आयुर्वेद में इनके खाने का वर्णन भी पढ़ा होगा कि इन्हें खाने से दीर्घ जीवन मिलता है। 


मेरा अनुमान है कि स्वामी दयानन्द जी ने स्वयं को ज्ञानी समझकर दीर्घ जीवन के लिए बिना आयुर्वेदिक चिकित्सक के परामर्श के पारे और अभ्रक की भस्में खाई होंगी। उसी के विषैले असर से उनके गले और आंत में ज़ख़्म हुए और वे मर गए। लेखराम कृत जीवनी में किसी वेश्य  के आदेश पर रसोईये द्वारा स्वामी जी को विष देने की कोई घटना अंकित नहीं है।  

Comments

  1. इश्वर पहला काम कबसे हुआ
    इश्वर का आरम्भ कब से है
    जब इश्वर अनादी है तब उसके कर्म भी अनादी होगे उसकी शुरुआत और अंत कैसे जानी जा सकती है

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  2. जब आर्यसमाजी ९५ सालो से निष्क्रीय है
    तब दयानन्द जी को असफल भी निष्क्रिय आर्य समाजियों ने किया

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