जब यहाँ क़ौम की ज़ुबान प्राकृत थी तो कलामे इलाही संस्कृत में कैसे आ सकता था?

 एक मुस्लिम के लिए क़ुरआन मजीद की आयतों में हिदायत है। वेद कलामे इलाही नहीं है। इसे भी क़ुरआन मजीद की आयत से आसानी से समझा जा सकता है।

अल्लाह कहता है कि हमने हरेक रसूल को उसी की क़ौम की ज़ुबान में भेजा ताकि वह मैसेज को लोगों पर क्लियर कर दे। (देखें सूरह इब्राहीम आयत नं0 4)

यहाँ आम लोगों की ज़ुबान प्राकृत थी और पंडितों की ज़ुबान संस्कृत थी। यहाँ आम लोग कभी संस्कृत नहीं बोले और न आज बोल और समझ सकते हैं। यहाँ संस्कृत में रब का संदेश आता तो 'लिनुबय्यिना लहुम' का मक़सद पूरा न होता। आम लोगों की समझ में संस्कृत भाषा की वजह से रब का संदेश ही न आता। सो यहां रब का संदेश आया होगा तो प्राकृत में आया होगा, संस्कृत में नहीं। संस्कृत यहाँ क़ौम की ज़ुबान कभी नहीं थी। ...और अल्लाह कहता है कि हम रसूल को उसी की क़ौम की ज़ुबान में मैसेज देकर भेजते हैं।

जब यहाँ क़ौम की ज़ुबान प्राकृत थी तो कलामे इलाही संस्कृत में कैसे आ सकता था?



Comments

Popular posts from this blog

Work Rampur के एक WORKer के साथ Dialogue इस विषय पर कि 'क्या वेद ईशवाणी हैं?'

ऊँ शब्द कौन बोलता है?

पुनर्जन्म और आवागमन की कल्पना में 2 बड़ी कमियाँ हैं