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ऊँ शब्द कौन बोलता है?

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Syed Shahroz Quamar sb की एक फ़ेसबुक पोस्ट पर निलय सिंह जी ने एक कमेंट किया था। जिस पर मैंने एक कमेंट किया।  Nilay Singh जी, ऊँ शब्द को ओंकार कहते हैं और जब बैल बोलता है तो वह 'ओं ओं' की ध्वनि निकालता है। सो बैल के मुंह से निकला शब्द एक प्राकृतिक शब्द है। इसे किसी धर्म से जोड़ना ग़लत है। यह प्राकृतिक शब्द सबका है। प्राचीन काल में जिसके पास अधिक पशु होते थे, वह अधिक धनी व्यक्ति माना जाता था। सो 'ओं' शब्द समृद्धि का प्रतीक था। जिसे पशुपालक समुदाय शुभ मानकर हरेक शुभ कार्य के शुरू में बोलते थे। आज भी सब देख सकते हैं कि बैल क्या शब्द बोलता है? ///  Syed Shahroz Quamar sb की फ़ेसबुक पोस्ट का लिंक:  https://www.facebook.com/share/p/TWcC3wv2RUf3VMnw/?mibextid=oFDknk

पुनर्जन्म और आवागमन की कल्पना में 2 बड़ी कमियाँ हैं

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जो लोग पुनर्जन्म या आवागमन में विश्वास करते हैं, यह लेख उनके लिए है। पुनर्जन्म को आवागमन के अर्थ में लिया जाता है और इसमें एक कमज़ोर बात यह है कि हर जन्म से पहले एक जन्म मानना आवश्यक है, जिसके कर्मों का फल भोगने के लिए दूसरा जन्म हुआ। फिर उससे पहले का जन्म क्यों हुआ? वह उससे पहले के जन्म के कर्मफल भोगने के लिए हुआ। इस प्रकार हर जन्म से पहले एक जन्म मानना पड़ता है और कोई भी जन्म सबसे पहला जन्म नहीं कहलाता। इस आवागमन को मानने से यह स्पष्ट नहीं होता कि मनुष्य का पहला जन्म कब और क्यों हुआ? वैज्ञानिक बताते हैं कि धरती पर मनुष्यों से पहले पेड़ पौधे और पशु पैदा हुए? ये किस पाप की सज़ा भुगतते रहे जबकि अभी धरती पर मनुष्यों ने कोई पाप ही नहीं किया था? पहले मनुष्य होते, वे पाप करते तो वे पापी पेड़-पौधे और पशु-पक्षी बनते लेकिन विज्ञान ने सिद्ध किया है कि पहले पेड़-पौधे और पशु-पक्षी बने। उनके बाद धरती पर मनुष्य पैदा हुआ।

क्या वेद में अन्न, फल और घी को आग देवता को खिलाने की शिक्षा परमेश्वर ने दी होगी?

वैदिक साहित्य विशाल है। स्वामी दयानंद जी द्वारा उसमें से पुराणों को छोड़ना, मनु स्मृति में अपनी मर्ज़ी से छंटाई करना, त्रिकाल संध्या को 2 समय करना और सब को सुबह शाम हवन की आग में खाद्य वस्तुएं जलाने पर बाध्य करने का अर्थ यही है कि स्वामी दयानंद जी वेदों के धर्म को ठीक से समझ नहीं पाए थे वर्ना वह सडको अपने गुरु विरजानंद जी का मत बताते कि वह वेद मंत्र का क्या अर्थ बताते थे? जो अपना धर्म न समझ पाया हो और अपने ही धर्म के ग्रंथों को नदी में डुबो चुका हो, उससे दूसरे धर्मों के आदर की अपेक्षा व्यर्थ है। स्वामी जी ने बताया है कि उन्हें उनके पिताजी ने कुल का कलंक कहा था। जब उनके पिताजी उन्हें सिद्धपुर के मेले से पकड़कर घर ले जा रहे थे, तब स्वामी जी शौच का बहाना करके लोटा लेकर निकले और एक बड़े पेड़ पर छिपकर बैठ गए। उनका बाप उन्हें ढूंढते हुए उस पेड़ के नीचे भी आया, जिसपर स्वामी जी छिपे हुए थे लेकिन स्वामी जी अपने सगे बाप को धोखा देकर भाग गए। इस तरह के थे स्वामी जी। फिर उन्होंने कुछ समय नशा भी किया लेकिन छोड़ दिया। अभद्र भाषा बोलना स्वामी जी से न छूट सका। सो वह अभद्र शब्द बोलते और लिखते थे तो इससे...

Work Rampur के एक WORKer के साथ Dialogue इस विषय पर कि 'क्या वेद ईशवाणी हैं?'

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 दोस्तो, मैंने फ़ेसबुक पर 5 दिन पहले वर्क रामपुर के 'वेदों को ईशवाणी मानने के खंडन में ' एक लेख लिखा था। जिसे आप मेरे ब्लाग पर नीचे दिए लिंक पर देख सकते हैं: https://vedkalamullahnahi.blogspot.com/2024/05/blog-post_10.html इस पर मेरी फ़ेसबुक फ़्रेंडलिस्ट में मौजूद मुहम्मद वसीम अहमद भाई ने एक कमेंट किया। जिसमें उन्होंने कुछ नहीं लिखा बस एक ब्लाग का कमेंट पेश किया। जिसके केंद्रीय विषय पर मैंने फ़ेसबुक पर एक दूसरा कमेंट लिखा, जोकि उसके शीर्षक से ज़ाहिर हो रहा है: मैंने वर्क रामपुर के इस नज़रिए के रद्द में एक लेख लिखा था कि 'वेद प्रथम ईशवाणी है।' मैंने लिखा था कि 'वेदों में क़ुरआन जैसी तौहीद नहीं है ' जिसके समर्थन में कई कमेंट आए। Mohmmad Aman Khan  भाई ने किसी Md Vaseem Ahmed को मेंशन किया और उन्होंने अपने कमेंट में कुछ नहीं लिखा। वह एक ब्लाग पर लिखे गए एक लेख का केवल लिंक चिपका गए। जो किसी ने वर्ष 2021 में लिखा है क्योंकि मैं कई वर्षों से यह बात रिपीट कर रहा हूँ। जिसे पढ़कर लोगों ने सवाल किए होंगे। मैं नहीं जानता कि वसीम अहमद भाई कौन हैं लेकिन उन्होंने जिस लेख का ...

वेदों में क़ुरआन जैसी तौहीद नहीं है

 वेदों में क़ुरआन जैसी तौहीद नहीं है वर्क रामपुर एक संगठन है, जिसके कार्यकर्ता मानते हैं कि वेद प्रथम ईशवाणी है यानी पहला कलामुल्लाह है। वे फ़ेसबुक आदि सोशल वेबसाइट्स पर यह लिखते रहते हैं। कलामुल्लाह की पहचान यह है कि जो कलामुल्लाह होता है, उसमें अल्लाह अपनी तौहीद को बार-बार बयान करता है। चाहे बाद में उसमें लोग कितनी भी मिलावट कर दें, उसके बावुजूद असल तौहीद उसमें से मिटती नहीं है। दूसरी बात यह है कि उस कलाम में रब का ज़ाती नाम मौजूद होता है। ज़ाती नाम भी रब की कुछ सिफ़ात का पता देता है लेकिन वह एक ख़ास नाम होता है। जो ख़ास नाम दूसरे सिफ़ाती नामों के मुक़ाबले रब अपने अस्तित्व के लिए अपने कलाम में सबसे ज़्यादा इस्तेमाल करता है, उसे ज़ाती नाम कहते हैं। रब के वुजूद का परिचय देने में बाक़ी सिफ़ाती नाम इस ख़ास नाम पर निर्भर करते हैं लेकिन यह ख़ास नाम रब के अस्तित्व की तरफ़ ध्यान दिलाने में किसी दूसरे सिफ़ाती नाम का ज़रूरतमंद नहीं होता।  वेदों में ये दोनों ही बातें नहीं पाई जातीं। वेदों का सायण का भाष्य सबसे पुराना है। जिसे देश-विदेश के सभी वेद के विद्वान मानते हैं। ग्रिफ़िथ ने अपना ...

वेदों में तौहीद (एकेश्वरवाद) नहीं है Tauheed

मैंने फ़ेसबुक पर एक पोस्ट की। जिसमें मैंने लिखा था कि वेदों में तौहीद नहीं है। इस पर अहसान फ़िरोज़ाबादी भाई ने एक कमेंट किया: तौहीद अर्थात ख़ुदा को उसकी ज़ात ओ सिफ़ात के साथ एक मानना। ऋग्वेद में है— य एक इत्। तमुष्टिहि।  (6-45-16) अर्थात्, वह एक ही है। उसी को पूजो। मा चिदन्यद् विशंसत। (8-1-1) अर्थात्, किसी दूसरे को मत पूजो। (उक्त दोनों मंत्रांशों के अनुवाद पं॰ गंगा प्रसाद उपाध्याय ने किये हैं।                  —‘इस्लाम के दीपक’, पृ॰ 402, 385, अमर स्वामी प्रकाशन विभाग, ग़ाज़ियाबाद, उ॰प्र॰) पतिर्बभृथासमो जनानामेको विश्वस्य भुवनस्यराजा। (ऋग्वेद 6-36-4) अर्थात्, संसार का स्वामी जिसके समान और नहीं, वह (एक) सहायरहित प्रकाशमान राजा है। (स्वामी दयानंद सरस्वती, ऋग्वेद भाष्य, पृ॰ 498) भुवनस्य पस्यपतिरेभ एव नमस्यो विक्ष्वीड्यः। (अथर्ववेद, 2-2-1) अर्थात्, सब ब्रह्माण्ड का एक ही स्वामी, नमस्कार योग्य और स्तुति योग्य है। (पं॰ क्षेमकरण दास त्रिवेदी) अथर्ववेद (2-2-2) में है— एक एव नमस्यः सुशेवाः। अर्थात्, वह एक ही है, जो नमस्कार और पूजा के योग्य है। (पं॰ ...

सनातन धर्मी विद्वान सूर्य, अग्नि और जल आदि प्राकृतिक तत्वों की उपासना करते हैं और यही वेदों में लिखा है

एक आम आदमी के लिए हरेक धर्मग्रंथ को पढ़ना ज़रूरी नहीं है। इसीलिए सब लोग सारे धर्मग्रंथों को पढ़ते भी नहीं हैं। अधिकतर लोग अपने ही धर्म के ग्रंथ को नहीं पढ़ते। लेकिन मैं  मुस्लिमों को यह सलाह दूंगा कि अगर आप अपने धर्मग्रंथ को पढ़ें तो उसका मान्यताप्राप्त अर्थ पढ़ें, जिसे सैकड़ों साल से आलिम मानते आ रहे हों। मैंने क़ुरआन पढ़ा तो सबसे पहले शाह रफ़ीउद्दीन साहब का अनुवाद पढ़ा। मैं अहले क़ुरआन फ़िरक़े के किसी आलिम का अनुवाद नहीं पढ़ूंगा। जिसमें पुराने शब्द के नए अर्थ लेकर नवीन अर्थ कर दिए और सवाल हल करने के बजाय और ज़्यादा सवाल खड़े कर दिए। उनके नए और अनोखे अनुवाद शिया-सुन्नी दोनों फ़िरक़ों के आलिम नहीं मानते। इसी नियम के आधार पर मैंने वेद‌ और उपनिषद पढ़े तो  पं० श्रीराम शर्मा आचार्य जी आदि #सनातन_धर्म के विद्वानों के अनुवाद पढ़े। जिनके ज्ञान में वेदार्थ सैकड़ों साल से चला आ रहा है और वे व्याकरण के नियमों से खेलकर कोई नया अर्थ नहीं बताते बल्कि वही पुराना अर्थ बताते हैं, जो सैकड़ों या हज़ारों साल से परंपरा से चला आ रहा है और वे विद्वान उसी अर्थ के अनुसार उपासना करते भी हैं जैसे कि वे...